गुरबचन सिंह रंधावा का खेल जीवन रहती दुनिया तक खिलाडिय़ों को प्रेरित करता रहेगा - परगट सिंह
भारतीय एथलीटों ने बड़ी चुनौतियों को पार करने की प्रेरणा रंधावा से ही ली - राजदीप सिंह गिल
‘उड्डना बाज’ भारत के खेल इतिहास का गौरवमयी दस्तावेज़ - गुरभजन सिंह गिल
चंडीगढ़, 14 नवम्बर:
एथलैटिक्स में भारत का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रौशन करने वाले ओलम्पियन गुरबचन सिंह रंधावा का खेल जीवन भारतीय खिलाडिय़ों के लिए प्रकाश स्तंभ की तरह है। देश के पहले अर्जुन पुरस्कार विजेता एथलीट रंधावा की उपलब्धियाँ रहती दुनिया तक खिलाडिय़ों को प्रेरित करती रहेंगी। यह बात पंजाब के खेल और उच्च शिक्षा एवं भाषाओं संबंधी मंत्री परगट सिंह ने खेल लेखक नवदीप सिंह गिल द्वारा ओलम्पियन गुरबचन सिंह रंधावा की लिखी जीवनी ‘उड्डना बाज’ के रिलीज समारोह में कही।
आज यहाँ पंजाब कला भवन में खेल मंत्री परगट सिंह, ओलम्पियन गुरबचन सिंह रंधावा, पूर्व डी.जी.पी. और पंजाब ओलम्पिक ऐसोसीएशन के वरिष्ठ उप प्रधान राजदीप सिंह गिल, पंजाबी साहित्य अकादमी के प्रधान प्रो. रवीन्दर भ_ल, पंजाब लोक विरासत अकादमी के चेयरमैन प्रो. गुरभजन सिंह गिल, पंजाब कला परिषद् के सचिव जनरल डॉ. लखविन्दर सिंह जौहल, अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज़ गुरबीर सिंह संधू, यूनीस्टार प्रकाशन के हरीश जैन ने ‘उड्डना बाज’ का लोकार्पण किया।
खेल मंत्री परगट सिंह ने कहा कि एथलैटिक्स खेल में ओलम्पिक खेल का फाइनलिस्ट, एशियाई खेल का बैस्ट एथलीट और राष्ट्रीय स्तर पर दो दिनों के अंदर चार नेशनल रिकॉर्ड बनाने वाले गुरबचन सिंह रंधावा की महानता की जीती जागती उदाहरण है। उन्होंने कहा कि नामी खिलाडिय़ों के गाँवों के नाम या उनके गाँव के स्टेडियम का नाम खिलाड़ी के नाम पर रखने का प्रस्ताव बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पंजाब का खेल इतिहास गौरवमयी उपलब्धियों से भरा पड़ा है, ज़रूरत है सिफऱ् इनको संभाल कर इतिहास के दस्तावेज़ बनाया जाए।
गुरबचन सिंह रंधावा 1964 की टोक्यो ओलम्पिक खेल में भारतीय खेल दल का झंडा बुलंद रहा था जहाँ उन्होंने 110 मीटर हर्डल्ज़ में पाँचवाँ स्थान हासिल किया। उन्होंने 1962 की जकार्ता एशियाई खेल में डिकैथलन में स्वर्ण पदक जीतते हुए बैस्ट एथलीट का खि़ताब जीता था। गुरबचन सिंह रंधावा को 1961 में अर्जुन पुरस्कार विजेता और 2005 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया। सी.आर.पी.एफ. में कमांडैंट के तौर पर रिटायर हुए गुरबचन सिंह रंधावा को पुलिस सेवाओं के बदले राष्ट्रपति पुरस्कार और पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के खेल सलाहकार के तौर पर सेवाएं निभाने के कारण ऑनरेरी पी.एच.डी. की डिग्री से भी सम्मानित किया गया।
अमृतसर जि़ले के गाँव नंगली में 6 जून 1939 को टहल सिंह रंधावा के गृह में माता धनवंत कौर की कोख से जन्म लिया, गुरबचन सिंह रंधावा के पिता, भाई हरभजन सिंह और पुत्र रणजीत रंधावा भी खिलाड़ी रहे हैं। उनकी पत्नी जसविन्दर जहाँ डिस्कस थ्रो में नेशनल स्तर की एथलीट रही हैं, वहां रुडक़ा कलाँ का ससुर परिवार भी खेल से ओत-प्रोत रहा है।
राजदीप सिंह गिल ने कहा कि गुरबचन सिंह रंधावा सबसे अधिक प्राकृतिक गुणों से लबरेज़, प्रतिभावान और भारत का संपूर्ण एथलीट है। भारतीय एथलीटों ने बड़ी चुनौतियों को पार करने की प्रेरणा गुरबचन सिंह रंधावा से ही सीखी, जिन्होंने खेल के सबसे बड़े मंच ओलम्पिक्स पर अपना बेहतरीन प्रदर्शन करना सिखाया है।
प्रो. गुरभजन सिंह गिल ने कहा कि गुरबचन सिंह रंधावा भारतीय खेल जगत का वह बिना गाया गीत है जिसने छोटे से गाँव नंगली से उठकर दुनिया के सबसे बड़े खेल मंच टोक्यो ओलम्पिक्स-1964 में अपनी छाप छोड़ी। यह पुस्तक सिफऱ् गुरबचन सिंह रंधावा की जीवनी या उपलब्धियों का लेखा-जोखा ही नहीं है, बल्कि भारत के खेल इतिहास का गौरवमयी दस्तावेज़ है। बीते इतिहास से वर्तमान बनता है और वर्तमान के सबक ही भविष्य के नक्शे कदम बनते हैं। नवदीप सिंह गिल की इस पुस्तक के द्वारा गुरबचन सिंह रंधावा हमारे सामने शानदार रूप में नई पहचान के साथ आएगा।
डॉ. लखविन्दर सिंह जौहल ने सभी मेहमानों का स्वागत करते हुए परगट सिंह का पंजाबी भाषा को लागू करने के लिए धन्यवाद किया।
अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज़ गुरबीर सिंह संधू ने कहा कि गुरबचन सिंह रंधावा भारतीय एथलैटिक्स के इतिहास का अकेला ऐसा एथलीट है जिसको सही मायनों में डिकैथलीट कह सकते हैं। कौशल की उसे परमात्मा से बखशीश रही। लगन, समर्पण, प्रतिबद्धता और सख़्त मेहनत उसका गहना था। शरीर उसका दर्शनी जो हर्डलों पर छलांग मारते हुए बहुत मन मोह लेता था। ग्राउंड में मज़ाक करना उसके स्वभाव का अटूट हिस्सा था।
प्रो. रवीन्दर भ_ल ने कहा कि गुरबचन सिंह रंधावा का खेल जीवन पंजाबियों की उपलब्धियों की मुँह बोलती तस्वीर है। प्रो भ_ल ने कहा कि नवदीप कॉलेज पढ़ता एवं खिलाड़ी बनने की इच्छा रखता था, परन्तु उसने खेल लिखारी बनकर खेल जगत की बड़ी सेवा की है।
पुस्तक के लेखक नवदीप सिंह गिल ने बोलते हुए कहा कि गुरबचन सिंह रंधावा भारतीय खेल का वह गौरवमयी हस्ताक्षर है जो अच्छे खिलाड़ी के साथ भारतीय खेल ख़ासकर एथलैटिक्स का एनसाईक्लोपीडिया भी है, जिस पर न सिफऱ् पूरे पंजाब से बल्कि सारे देश-वासी को गर्व है। पंजाबी इतिहास सृजन करना जानते हैं, संभालना नहीं, पंजाबियों के इसी कटाक्ष को दूर करने के लिए पुराने और महान खिलाडिय़ों की खेल जीवनियाँ लिखने का फ़ैसला किया है, जिसकी शुरूआत गुरबचन सिंह रंधावा से हो गई है।
हरीश जैन ने कहा कि लोक गीत प्रकाशन द्वारा और भी खिलाडिय़ों की जीवनियाँ छापी जाएँ।
इस पुस्तक के लेखक नवदीप सिंह गिल जो पंजाब सरकार में सूचना एवं लोक संपर्क अधिकारी के तौर पर सेवाएं निभा रहे हैं, की यह छठी किताब है। नवदीप सिंह गिल ने बतौर खेल पत्रकार बीजिंग ओलम्पिक खेल -2008, दोहा एशियाई खेल-2006 और दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल-2010 की कवरेज भी की है।
यूनीस्टार (लोकगीत) प्रकाशन द्वारा छापी गई 296 पन्नों की इस पुस्तक में गुरबचन सिंह रंधावा के गाँव, परिवार, बचपन से खेल जीवन और बाद में सी.आर.पी.एफ. की सर्विस, प्रशिक्षक, प्रशासक, सलाहकार, मतदाता और डोपिंड पैनल के प्रमुख के तौर पर सेवा का भी जि़क्र किया है। समकालीन खिलाडिय़ों के विवरणों समेत एथलीट रंधावा के जीवन के रोचक पहलूओं की भी जानकारी मिलती है। पुस्तक में गुरबचन सिंह रंधावा के बचपन से अब तक के सफऱ को तस्वीरों की ज़ुबानी भी दिखाया गया है।
अंत में पंजाब लेखक पत्रकार मंच के प्रधान तरलोचन सिंह ने सबका धन्यवाद किया।
इस मौके पर इस मौके इस मौके गुरबचन सिंह रंधावा के बड़े भाई पूर्व चीफ़ प्रशिक्षक हरभजन सिंह रंधावा, खेल विभाग के डायरैक्टर परमिन्दर सिंह संधू, लोक गायक पम्मी बाई, मिल्कफैड के एमडी कमलदीप सिंह संघा, डॉ. करमजीत सरां, कैप्टन नरिन्दर सिंह, ओलम्पियन सुखवीर गरेवाल, पंजाब ओलम्पिक ऐसोसीएशन के सचिव जनरल राजा केएस सिद्धू, डॉ. राज कुमार, पिरथीपाल सिंह, दलमेघ सिंह, डॉ. ओपिन्दर सिंह लाम्बा, रणदीप सिंह आहलूवालिया, हरजाप सिंह औजला, रविन्दर रंगूवाल, कबीर सिंह, गुरमंगल सिंह रुडक़ा, डॉ. अजीतपाल सिंह चहल, अनुराग बचन सिंह ढींडसा आदि उपस्थित थे।