मोरिंडा, 5 फरवरी (भटोआ)
साहित्य सभा बेहरामपुर बेट की मासिक बैठक में सआदत हसन मंटो की पुस्तक 'मंटोनवां' के साथ अनिरुद्ध कला के कहानी संग्रह 'लाहौर दा पागलखान' और मोहन लाल फ्लोरिया की कहानी '' पर चर्चा हुई. हरनाम सिंह डल्ला की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में कहानी संग्रह लाहौर दा पागलखाना का परिचय देते हुए कुलविंदर ने कहा कि सांप्रदायिक आधार पर संताली में विभाजन का विस्तार करने वाली यह पुस्तक पाठकों को धार्मिक कट्टरता से आगाह करती है। इस पुस्तक के प्रभाव को स्वीकार करते हुए कुलविंदर ने कहा कि पूर्वाग्रह पर आधारित साम्प्रदायिक भावनाएं कभी भी मानवता की भलाई का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकतीं। तत्पश्चात मोहनलाल राही ने मोहनलाल फ्लोरिया की बहुचर्चित कहानी 'मोती दा पुत्त' पढ़कर उपस्थित साहित्यकारों को चर्चा के लिए आमंत्रित किया। इस चर्चा में भाग लेते हुए डॉ. दौलत राम लोई, हरनाम सिंह डल्ला, सुरिंदर रसूलपुर और डॉ. तेजपाल सिंह कंग ने कहा कि यह कहानी मजदूर वर्ग के लोगों की स्थिति के बारे में बात करके और भारतीय सामाजिक संरचना में सम्मान देकर नए समाज का मार्गदर्शन कर रही है. जाति व्यवस्था को समाप्त कर ही मानवता का भला हो सकता है। इसके बाद डॉ. राजपाल सिंह ने सआदत हसन मंटो की किताब 'मंटोनवां' पर अपने विचार रखे और कहा कि मंटो आम भारत के प्रमुख विद्वान हैं। मंटोनावन' में सआदत हसन मंटो ने दुनिया के महान दार्शनिकों की विचारधाराओं को पाठकों के सामने रखा है। अपनी कहानियों, नाटकों और वैचारिक लेखन के लिए जाने जाने वाले इस लेखक को 'ईश्वर का साथी' भी कहा जाता है। इस मौके पर मनमोहन सिंह राणा, बापू सुच्चा सिंह अधरेड़ा, डॉ. गुरप्रसाद सिंह, राणा कंवरफुल सिंह और अजमेर फिरोजपुरी भी मौजूद रहे। इस दौरान उपस्थित साहित्यकारों ने भी अपनी रचनाओं का वाचन किया।
बापू सुच्चा सिंह अधरेड़ा ने अपनी पोती डॉ. जसप्रीत कौर के विवाह अवसर पर साहित्य सभा बेहरामपुर बेट को 3100 रुपये की आर्थिक सहायता भी दी.